क्या खाते थे महाभारत के योद्धा

क्या खाते थे महाभारत के योद्धा, महाभारत



अगर हम आपसे कहे कि बिना ब्रेकफास्ट बिना लंच के अपने स्कूल और दफ्तर निकल जाए तो आप का मन थोड़ा ना थारो दुखी जरूर होगा 
जरा सोचिए उन योद्धाओं का उन सैनिकों का जो इतिहास के सबसे बड़े युद्ध में अपना बलिदान दिया था
हम बात कर रहे हैं महाभारत के सैनिकों का जरा सोच कर देखिए कैसा खाना होता होगा उनका जिनका सामना ब्रह्मास्त्र और दुनिया के नामचीन योद्धा से होता है, क्या उन्हें सही पोषण और अच्छा भोजन मिल पता होगा, कि वह सैनिक जो सैकड़ों दुश्मन से सामना कर सके 

महाभारत के युद्ध में तकरीबन सभी महारथी और 50 लाख से ज्यादा कि सेना योद्धा में भाग लिए थे 
लेकिन सवाल उठता है कि इतनी विशालकाय सेना की युद्ध के दौरान भोजन कौन बनाता था और सबसे बड़ा सवाल यह है कि हर दिन हजारों लोग मारे जाते थे तब शाम के खाना किस हिसाब किताब से और कैसे बनता था

महाभारत को दुनिया का पहला विश्व युद्ध भी कह सकते हैं
ऐसा कोई राज नहीं जो महाभारत में भाग नहीं लिया हो आर्यावर्त के समस्त राजा या तो कौरव या तो पांडव के साथ खारा दिख रहे थे 
हम सभी जानते हैं कि बलिराम और रूपमणि यह दो ही लोग थे जो इस युद्ध में भाग नहीं लिया था

लेकिन एक और राज्य था जो युद्ध क्षेत्र में होते हुए भी युद्ध में भाग नहीं लिया था उडुपी महाभारत में वर्णित कथा के हिसाब से उडुपी के राजा अपनी सेना समस्त कुरुक्षेत्र में पहुंचे कौरव और पांडव दोनों ने उन्हें अपनी पक्ष में लेने की कोशिश की लेकिन कुदुपि के राजा बहुत दूर दृष्टि वाले थे उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कि दोनों और की सेना युद्ध के लिए तैयार है लेकिन किसी ने सोचा कि इतनी विशाल सेना की भोजन का प्रबंध कैसे होगा श्री कृष्ण ने कहा महाराज आपने सही सोचा है आपकी इस बात से मुझे प्रतीत होता है कि आपके पास इसकी कोई योजना है अगर योजना है तो कृपया बताएं उडुपी के राजा ने कहा कि सच तो यह है कि भाइयों के बीच इस युद्ध को हम युद्ध नहीं मानते लेकिन इस युद्ध को टाला भी नहीं जा सकता 

मेरी यह इच्छा है कि यहां पर उपलब्ध सभी सेना की भोजन का प्रबंध करू श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए बोले महाराज आपका विचार अति उत्तम है इस युद्ध में 50 लाख योद्धा भाग लेंगे और आप जैसा कुशल राजा भोजन का प्रबंध देखेंगे इस से अच्छी बात और क्या हो सकता है

उडुपी के राजा ने अगले दिन से भोजन का भार संभाला उनकी की कुशलता ऐसी थी, 
दिन का एक भी दाना बर्बाद नहीं होता था जैसे जैसे दिन बित ते गाये योद्धाओं की संख्या बहुत कम होती गई दोनों और कि योद्धा देखकर आश्चर्यचकित हो जाते थे  
उडुपी नरेश इतना ही खाना बनाते थे जितने सैनिक रहते थे
किसी को समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें कैसे पता चल जाता है कि आज कितना योद्धा मृत्यु गति को प्राप्त हुए हैं 

इतनी बड़ी सेना कि भोजन का प्रबंध करना अपने आप में आश्चर्य था जिस प्रकार से अन का एक भी दाना बर्बाद ना हो यह तो किसी चमत्कार से कम नहीं था 

18 दिन के बाद युद्ध समाप्त हुआ पांडवों का राज अभिषेक के दिन युधिष्ठिर से रहा नहीं गया पूछ ही लिया हे महाराज समस्त देशो के राजा हमारे प्रशंसा कर रहे हैं कि किस प्रकार हम कम सेना होते हुए भी
अपने से बहुत विशाल सेना को परास्त कर दिया जिसका नेतृत्व पिता महाविष्म जैसे माहा रथी कर रहे थे मुझे लगता है हम सब से प्रशंसा के पात्र आप है
 
इतनी विशाल सेना के लिए भोजन का प्रबंध किया और ऐसा पबंध किया कि भोजन का एक दाना बर्बाद नहीं हो पाया मैं आपके कुशलता का रहस्य जानना चाहता हूं उडुपी नरेश ने मुस्कुराते हुए कहा आपने जो इस युद्ध में विजई पाई है इसका श्रेय किसे देंगे।
युधिष्ठिर ने कहा इसका श्रेय श्री कृष्ण के अलावा किसी को जा नहीं सकता अगर वह नहीं होते तो कौरव सेना को परास्त करना असंभव था उडुपी नरेश ने कहा 


आप जिसे मेरा चमत्कार कह रहे हैं वह श्री कृष्ण का प्रताप है ऐसा सुनकर वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए तब उडुपी नरेश ने रहस्य से पर्दा हटाया और कहां 

श्री कृष्ण पर्ती रात्रि को मूंगफली खाते थे परती शाम को गीन कर मूंगफली रखी जाती थी और सुबह तक जितनी मूंगफली खाते थे उतना हजार सैनिक युद्ध में मारे जाते थे इसी हिसाब से कल भोजन कम मनाया जाता था यही कारण था कि कभी भी भोजन बेर्थ नहीं हुआ


श्री कृष्ण का चमत्कार सुनकर सभी नतमस्तक हो गये यह कथा कर्नाटक के उडुपी जिले के कृष्ण मंदिर सुनाया जाता है ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण उडुपी के राजा के समय में हुआ था

(जय हिंद 🚩)

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