हाल ही में 1984 के सिख दंगों पर एक वेब सीरीज़ रिलीज़ हुई है जिसका नाम है ‘ग्रहण’. इस वेब सीरीज़ के ख़िलाफ़ कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता का आरोप है कि इसमें सिखों की छवि बिगाड़ने की कोशिश की गई है. ग्रहण में 1984 में बोकारो में हुए दंगे की कहानी है.
पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बोकारो में भी सिखों को दूसरे समुदाय के लोगों की नफ़रत का शिकार होना पड़ा था. 37 साल पहले हुए ये नरसंहार कब और कैसे हुआ इसकी असली कहानी हम लेकर आए हैं.
31 अक्टूबर 1984 की रात को बोकारो की गलियां भी इस दंगे की आग की लपटों का शिकार हुई थी. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सिखों को हिराकत भरी निगाहों देखा जाने लगा था. इसका फ़ायदा कुछ असामाजिक तत्वों ने उठाया. उन्होंने लोगों की पीड़ा को सिखों के प्रति घृणा में बदल दिया और उनसे बदला लेने के लिए बरगलाया. भड़काऊ भाषण दिए गए और फिर उन्मादी भीड़ ने जो किया वैसा शायद इस देश में सिखों के साथ कभी नहीं हुआ होगा.
बोकारो में चुन-चुनकर सिखों के घरों को टारगेट किया गया. उनकी दुकानें लूट ली गईं. उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया और सिख समुदाय के लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बोकारो शहर में 100 से अधिक सिखों ने अपनी जान गंवाई थी.
ख़बरों में ये दावा किया गया कि इस दंगे के पीछे एक स्थानीय कांग्रेस अध्यक्ष और पेट्रोल पंप के मालिक पी.के. त्रिपाठी का हाथ था. उसने अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला करने के लिए भीड़ को मिट्टी का तेल वितरित किया था, लेकिन इस नरसंहार के 37 साल गुज़र जाने के बाद भी आज भी दंगा पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाया है.
बोकारो में हुए उस नरसंहार की भयावहता को याद कर आज भी पीड़ित सिहर जाते हैं. बोकारो नरसंहार 1984 हमारे इतिहास का एक ऐसा ख़ूनी पन्ना है जिसे जब भी पढ़ा जाएगा दिल दहल जाएगा. इसे न तो हम भुला सकते हैं और न ही इससे मुंह मोड़ सकते हैं.
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