मध्यप्रदेश और निमाड़ के महानतम क्रांतिकारी टंट्या भील।
इनका जन्म 1840 के आसपास खंडवा जिले की पंधाना तहसील के बड़दा गांव में हुआ था। अंग्रेजों के दमन और अत्याचार से तंग आकर भील समुदाय का नेतृत्व कर सरकारी खजाना लूटकर गरीबों में बांटना शुरू कर दिया। गुरिल्ला शैली में पंद्रह साल तक छापामार युद्ध किया और अनेक बार अंग्रेजों और होलकर स्टेट की जेल से फरार हुए। अंत में एक करीबी के धोखे से गिरफ्तार हुए, और इंदौर में रखा गया, बाद में 1889 में जबलपुर में फांसी हुई। रॉबिन हुड ऑफ इंडिया के नाम से न्यूयॉर्क टाइम्स में समाचार छपा था गिरफ्तारी के बाद।
पातालपानी के पास रेलवे लाइन के किनारे जहां उनकी लाश को फेंका गया, वहां समाधि बनाकर उनके लकड़ी के बुत रखे गए हैं, और पूरे इलाके के लिए यह पूज्यनीय स्थल है।
छायाचित्र साभार: आदिवासी प्रकृति पूजक होते है
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