दुनिया आज के दिन क्यू मानती हैं पर्वत दिवस

पहाड़ों में विश्व की 15 प्रतिशत आबादी बसती है। दुनिया भर में 20 प्रतिशत पर्यटन पहाड़ों में होता है। ये धरती के कुदरती गहने हैं पर सिर्फ देखने भर के नहीं। ये अधिकांश सदानीरा नदियों के उद्गम हैं। जैसे, हिमालय को यूँ ही ‘तीसरा ध्रुव’ नहीं कहते। ये बचेंगे तो दुनिया बचेगी। बदलती दुनिया में पहाड़ों के सामने अनेक खतरे हैं। इसीलिए पहाड़ों के संरक्षण को सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में शामिल करते हुए संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने पहली बार 2003 में अंतरराष्ट्रीय पहाड़ दिवस (International Mountain Day) मनाने का फैसला किया।उत्तर प्रदेश के सहारनपुर शहर से दुर्लभ हिमालय दर्शन। यहाँ से पहाड़ बहुत करीब हैं मगर प्रदूषण के कारण दिखते नहीं थे। कोविड-19 के शुरुआती दिनों में पूर्ण तालाबंदी से प्रदूषण घटा तो वर्तमान पीढ़ियों की याद में पहली बार शहर से पहाड़ दिखा। चित्र
उत्तर भारत में शुरुआती दिनों में कोविड-19 की तालाबंदी को शुभ माना गया। कल-कारखाने और गाड़ियों के चक्के थमने से प्रदूषण घट गया। चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी। और तो और, पहाड़ मैदानों में उतर आए। पंजाब में जालंधर-कपूरथला जैसे शहरों से दो सौ किलोमीटर दूर स्थित धर्मशाला की धौलाधार पर्वतमाला चमकने लगी।

ऐसी खबरें उत्तर प्रदेश में सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली से आईं। बिहार में सीतामढ़ी के गांव वालों ने भी अपनी छतों से हिमालय की बर्फीली चोटियों के फ़ोटो खींचे तो ये सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। इन मैदानी इलाकों के लोगों ने सपनों में भी नहीं सोचा होगा कि घर बैठे हिमालय दर्शन होंगे। जैसे, क्रिकेटर हरभजन सिंह भज्जी ने ट्वीट करते हुए लिखा

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